Thursday, November 11, 2010




गोपाष्टमी की तैयारिया जोरो पर
मंडी आदमपुर,11 नवम्बर।
कॉलेज रोड़ स्थित श्री कृष्ण गौशाला में गोपाष्टमी पर्व के आयोजन की तैयारियां काफी धूमधाम से चल रही है। यहां पर 12 नवम्बर से लेकर 14 नवम्बर तक यह पर्व मनाया जायेगा। उक्त जानकारी देते हुए गौशाला के प्रधान तरसेम गोयल ने बताया कि इस दौरान विशाल भंडारा व गौपूजन कार्यक्रम के अलावा भव्य सत्संग का आयोजन किया जाएगा। वहीं गौ भक्त अशोक कथूरियां ने बताया कि यहां पर प्रत्येक अमावस्या व पूर्णिमा को सवामणि लगाई जाती है। इस अवसर पर सत्संग का आयोजन भी किया जाता है। इस दौरान आदमपुर के अलावा आस-पास केकई गांवों के लोग इसमें शामिल होत है। किरण ऐलावादी ने कहा कि गौमाता को 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास कहा गया है। ऐसे में इनके लिए लगाई जाने वाली सवामणि कई तीर्थयात्राओं के समान होती है। प्रत्येक व्यक्ति का परम कर्तव्य बनता है कि वह अपने घर-परिवार में खुशी के अवसर पर गौशाला में आकर सवामणि या हरा चारा गौमाता को भेंट करे। सम्पत शर्मा ने कहा कि गौशाला में आना मंदिर में जाने से भी पवित्र और पुण्य कार्य है। गौशाला में आकर गौमाता की सेवा करने से मनुष्य को आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। ऐसे में गोपाष्टमी पर्व पर गौशाला में आने का अपना अलग महत्व है।
मिट्टी के भगवान के सहारे कई परिवार
मंडी आदमपुर,11 नवम्बर।
हिंदी की प्रसिद्ध कहावत 'गरीब का भगवानÓ काफी हद तक कुछ परिवारों के लिए सार्थक सिद्ध हो रही है। मिट्टी के भगवान ने यहां पर चार परिवार के कुल तीन दर्जन लोगों को रोजी-रोटी दे रखी है। यहां पर बिहार से आए कई परिवार पिछले काफी दिनों से भगवान की मूर्तिया बेचकर ही अपना गुजारा कर रहा है। इस परिवार के मुखिया ने बताया कि उन्होंने यह कला मुस्लिम कलाकर से सीखी थी। पहले उनका परिवार सड़क निर्माण के कार्य में मजदूरी करता था। परंतु इसी दौरान यहां पर मध्य प्रदेश से प्लास्टर ऑफ पैरिस से भगवान की मूर्ति बनाकर बेचने वाला एक मुस्लिम परिवार आया। बारिश के दिनों में वह वापिस अपने प्रदेश में लौट गया। परंतु जाने से पहले उन्होंने अपने सांचे हमें दे दिए और यह कला सिखा दी। इसके बाद उनका पूरा परिवार इसी कार्य में लगा हुआ है। यह काम अच्छा है। लोग भगवान की मूर्ति काफी जल्द ही ले लेते है। एक मूर्ति में 20 से 25 रुपए बच जाते है। एक दिन में उनका परिवार 20 से 25 मूर्ति बेच देते हैं। ऐसे में अब अनकी माली हालत पहले की तुलना में काफी अच्छी हो गई है। उन्होंने बताया कि वे आदमपुर के आसपास के गांवों में जाकर भी ये मूर्ति बेचते है। मूर्ति बनाने में घर के छोटे बच्चों से लेकर महिलाएं तक काम करती है। जबकि बेचने का काम मुखिया करता है। इस समय यहां पर मृर्ति बनाने व बेचने का काम कुल चार परिवार कर रहे है। इन लोगों के लिए यह काम गृहउद्योग से कम नहीं है। इसमें कच्चा माल तैयार करने वाले अलग है। सांचे में कच्चे माल को भरकर मूर्ति बनाने वाले अलग है और इन मूर्तियों पर रंग करके सजाने का काम करने वाले अलग है। इसके बाद तैयार मूर्ति को बेचने की जिम्मेवारी अन्य व्यक्ति पर है। कुल मिलाकर भगवान की मूर्ति बनाकर बेचना गरीबों की मजबूरी ही है, परंतु यह कार्य अपने-आप में काफी जटिलता लिए हुए है और किसी उद्योग से कम नही है।

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